श्रीकृष्ण ने अर्जुन को चिंतित अवस्था में देख कर पूछा, "कौरवों को निपटे युग बीत गया। पुनः किस उलझन में फंसे हो गांडीवधारी?"
बेचैन अर्जुन बोला, " मैं बड़ी उहापोह में हूं। हे केशव! आत्मा और धर्म की फिर से व्याख्या करने का वक्त आ गया है।"
श्री कृष्ण हंसे और कहा, "यह चैप्टर तो द्वापर में ही क्लोज हो गया था कौंतेय। फिर भी तुम्हारे मन में छोटी-मोटी शंकाएं हैं, तो गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित असली गीता की एक प्रति वीपीपी से मंगालो। आत्मा और धर्म के विषय में नवीनतम जानकारी प्राप्त करने हेतु मैं भी उसी का सहारा लेता रहा हूं। तुम धनुष-बाण खूंटी पर टांगो और कागज-पेन निकालो। मैं तुम्हें गीताप्रेस, गोरखपुर का एड्रेस नोट करा देता हूं।"
अर्जुन ने श्रीकृष्ण को बोध कराया, "हे योगीश! गीताप्रेस, गोरखपुर से छपी हुई गीताएं तो आर्यावृत्त में झूठी शपथ खाने के काम आ रही हैं। मैं चाहता हूं कि आप तुरंत अवतार लें तथा नई गीता लिखें।"
श्रीकृष्ण ने लाचारी प्रकट की, "तुम सोचो जरा इंद्रसुत! द्वारका का वैभव और और सोलह हजार रानियों का सानिध्य सुख छोड़ कर मैं अन्य अवतार कैसे लेलूं? जहां तक नई गीता के लेखन का सवाल है, तो व्यक्ति एक पुस्तक लिखते ही सीनियर राइटर हो जाता है। और वरिष्ठ लेखक का दायित्व होता है कि वह लिखना-पढ़ना त्याग कर साहित्यिक दांव-पेंच एवं पुरस्कारों की आस में टाईमपास करे। लगता है तुम्हारे मस्तिष्क से अभी महाभारत नहीं निकला है मित्र?"
अर्जुन ने समस्या बतायी, "हे माधव! मेरे दिमाग में महाभारत नहीं, भारत घूम रहा है। वहां राष्ट्रपति का चुनाव है। सांसदों-विधायकों से कह दिया गया है कि सब अपनी आत्मा की आवाज सुन कर ही मतदान करें। अब आप ही बताइए हे शंखधर! जिनकी आत्मा मर चुकी, वे बेचारे वोटिंग के समय किसकी आवाज सुनें?"
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया, "हे जयंत! मैं नई गीता लिख भी दूंगा, तो भी पाठक उसी गीताप्रेस, गोरखपुर वाली पुरानी गीता को ही ओरिजनल मानेंगे। रागी हो कि वैरागी, साधु हो कि गृहस्थ, सब के स्वार्थ में सदुपयोग भी वही हो रही है। फिर पारिश्रमिक रहित श्रम करना भी मूर्खता है। प्रकाशकों ने स्वयं तो मेरी गीता की करोड़ों प्रतियां छाप-छाप कर घरों में वैभव-विलास के साधन जुटा लिए और मुझे आज तक धेलाभर रॉयल्टी भी नहीं दी। अतः हे पार्थ! संशय में मत पड़ो। स्मरण रखो तुम अर्जुन हो, अर्जुन सिंह नहीं।"
अर्जुन ने आशंका दोहराई तथा आगाह किया, "हे मुरारी! मुझे लगता है कि भारत में नित्य ही कौरव और पांडव आमने-सामने रहने लगे हैं। आपके कथन के विपरीत आत्माएं मरने लगी हैं। भारत को अतिशीघ्र बचाना है। प्रभु! भूलो मत कि आप द्वारा रचित इतनी बड़ी सृष्टि में भारतीय ही हैं, जो अपने को थोड़ा बहुत मानते हैं। भारत नहीं बचा, तो अपन भी नहीं बचेंगे।"
श्रीकृष्ण ने उपदेशात्मक लहजे में कहा, "हे अर्जुन! आत्मा कभी मरती नहीं है। हां, बेची जा सकती है, गिरवी रखी जा सकती है, दबाई, पीटी और कुचली भी जा सकती है। चाहो, तो मैं तुम्हें भारत भूमि पर चल कर प्रत्यक्ष दिखा सकता हूं।"
इतनी कहा-सुनी के पश्चात् अर्जुन और श्रीकृष्ण ने साधुओं का रूप बनाया तथा दोनों भारत की धरती पर आकर राजनीति के गलियारों में फेरी लगाने लगे।
एक आत्मा को उसीका शरणदाता लातें जमा रहा था, "अपनी औकात में रह साली। बड़ी आई मुझे नैतिकता और वफादारी समझाने वाली। याद रखा कर, तू किसी सैनिक की नहीं, शिवसैनिक की आत्मा है। और शिवसैनिक के लिए राष्ट्र से बड़ा होता है महाराष्ट्र।"
दोनों साधुओं ने सुना। कई आत्माएं आर्तनाद कर रही थीं, "हाय! हमारे मालिक कितने निर्लज्ज हैं। कह रहे हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेंगे। अपने लिए वोट मांगने का समय आता है, तो भिखारी बन जाते हैं दुष्ट। जिस वोट के बल पर नालायक से लायक बने, आज उसी का तिरस्कार कर रहे हैं।"
अर्जुन ने आहिस्ता से पूछा, "हे सोमेश्वर! ये आत्माएं क्या प्रलाप कर रही हैं?"
श्रीकृष्ण ने हौले से उत्तर दिया, "हे धनञ्जय! ये सब थर्ड फ्रंट के मतलबी नेताओं की आत्माएं हैं, जो स्वार्थों के वशीभूत हो शिखण्डी बन गए हैं।"
कांगेसी वार्ता कर रहे थे, "हमने तो सोनिया गांधी जी की आवाज में कैसेट भरवा कर अपनी-अपनी आत्मा में फिट करवा ली है। जब भी 10 जनपथ से सत्य सुनने का आदेश मिलता है, फौरन टेप चालू कर सत्य सुन लेते हैं। कोई कांग्रेसी कहे कि वह सिर्फ निजी आत्मा की ही सुनता है, तो समझो वह भले कुछ और हो, 'सच्चा कांग्रेसी' नहीं हो सकता।"
एक निरीह आत्मा ने प्रार्थना की, "मेरी आवाज सुनोगे स्वामी?"
प्रतिक्रिया में उस आत्मा के आश्रयदाता ने उसे लाठी से पीटना प्रारम्भ कर दिया, "तू क्या इतनी सुदर्शन और सुरीली है कि तेरी आवाज सुनी जाए? तू सुन। हम भाजपाई हैं। हमने तो आजतक कभी उस भाग्यविधाता की ही नहीं सुनी, जो हमें वोट देता आया है।"
कई भाजपाई क्रॉस वोटिंग कर आए। दोनों साधुओं ने देखा, आलाकमान उन्हें तलब कर रहा है, "भैरों सिंह शेखावत को वोट देना था। प्रतिभा पाटिल को दे आए?"
"आत्मा की आवाज सुनी और दे आए।"
"भाजपाई होकर आत्मा की आवाज सुनते हो? शर्म नहीं आती तुम लोगों को?"
"आप ही ने तो कहा था कि मतदान आत्मा की आवाज सुन कर ही करना।"
"मैंने इसलिए कहा था कि चुनावों में ऐसा कहने का रिवाज है।ये शगूफे होते हैं, जो विरोधियों को पशोपेश में डालने हेतु छोड़े जाते हैं। अपनी आत्मा की आवाज सुनने से पहले जरा इतनी अक्ल तो लगाते कि क्या मैंने भी यह अपील अपनी आत्मा की आवाज सुन कर की थी? तुम्हें मालूम है, तुम्हारे इस सत्य आचरण से भारतीय जनता पार्टी को कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है?"
दोनों साधुओं को साम्यवादियों की आत्मा की भनक भी नहीं लगी। दया के पात्र भारतीय साम्यवादी आत्मा का बंधन नहीं स्वीकारते हैं। उनके सरोकार तो गठबंधन की आत्माओं से जुड़े हैं।
साधुओं ने यह भी देखा कि समाजवादियों की आत्मा उनके जूतों के तलों में लगी थीं और वे अपनी आत्मा को कुचलते हुए चले जा रहे थे।
मतदान केंद्र के बाहर आत्माओं का बड़ा समूह जार-जार रोए जा रहा था, "स्वयं ठप्पा लगाने गए। हमें यहीं छोड़ गए। हमारी सुनो मत, साथ तो रखो। तिरासी लाख निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे योनियों में भटकने के बाद भी न जाने कौनसा पाप शेष रह गया था, जो रहने के लिए इन नेताओं की देह मिली? हे परमात्मा! इन्हें शीघ्र उठा, ताकि हमें मुक्ति मिले। हमें पिछली समस्त योनियों में फिर से भटकना स्वीकार है प्रभु।"
कई नेता अपना वोट डालने तिहाड़ जेल से आए थे। किसी ने उनसे मजाक करी, "आत्मा की आवाज सुनी?"
ठहाके लगे, "ये आत्मा-वात्मा क्या होती है?"
दृश्य देख कर अर्जुन की आंखें फटी रह गईँ। उसके आश्चर्य का पारावार न रहा। भारतवर्ष में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाला राष्ट्रपति अपराधियों के वोटों से चुना जाता है?
अर्जुन बोला, "हे हरि! अविलंब लौट चलो। मैं आत्मा और धर्म के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान हासिल कर चुका हूं। राजनीति में काम, अर्थ और मोक्ष का चांस मिल रहा हो, तो राजनेताओं का धर्म बनता है कि वे साम, दाम, दण्ड, भेद से अपनी आत्माओं को गूंगी करदें अथवा स्वयं बहरे हो जाएं।"
श्रीकृष्ण मुस्काए। दोनों साधु कबीर वाणी गाते हुए अंतर्ध्यान हो गए--
सातों सबद जु बाजते, घरि घरि होते राग।
ते मंदिर खाली पड़े, बैसण लागे काग।।
अर्थात् भौतिक वैभव से युक्त जिन महलों में कभी सातों स्वर ध्वनित होते थे, प्रत्येक क्षण राग-रागनियां बजती थीं, वे महल खाली पड़े हैं।आज उन पर कौए बैठते हैं।
बेचैन अर्जुन बोला, " मैं बड़ी उहापोह में हूं। हे केशव! आत्मा और धर्म की फिर से व्याख्या करने का वक्त आ गया है।"
श्री कृष्ण हंसे और कहा, "यह चैप्टर तो द्वापर में ही क्लोज हो गया था कौंतेय। फिर भी तुम्हारे मन में छोटी-मोटी शंकाएं हैं, तो गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित असली गीता की एक प्रति वीपीपी से मंगालो। आत्मा और धर्म के विषय में नवीनतम जानकारी प्राप्त करने हेतु मैं भी उसी का सहारा लेता रहा हूं। तुम धनुष-बाण खूंटी पर टांगो और कागज-पेन निकालो। मैं तुम्हें गीताप्रेस, गोरखपुर का एड्रेस नोट करा देता हूं।"
अर्जुन ने श्रीकृष्ण को बोध कराया, "हे योगीश! गीताप्रेस, गोरखपुर से छपी हुई गीताएं तो आर्यावृत्त में झूठी शपथ खाने के काम आ रही हैं। मैं चाहता हूं कि आप तुरंत अवतार लें तथा नई गीता लिखें।"
श्रीकृष्ण ने लाचारी प्रकट की, "तुम सोचो जरा इंद्रसुत! द्वारका का वैभव और और सोलह हजार रानियों का सानिध्य सुख छोड़ कर मैं अन्य अवतार कैसे लेलूं? जहां तक नई गीता के लेखन का सवाल है, तो व्यक्ति एक पुस्तक लिखते ही सीनियर राइटर हो जाता है। और वरिष्ठ लेखक का दायित्व होता है कि वह लिखना-पढ़ना त्याग कर साहित्यिक दांव-पेंच एवं पुरस्कारों की आस में टाईमपास करे। लगता है तुम्हारे मस्तिष्क से अभी महाभारत नहीं निकला है मित्र?"
अर्जुन ने समस्या बतायी, "हे माधव! मेरे दिमाग में महाभारत नहीं, भारत घूम रहा है। वहां राष्ट्रपति का चुनाव है। सांसदों-विधायकों से कह दिया गया है कि सब अपनी आत्मा की आवाज सुन कर ही मतदान करें। अब आप ही बताइए हे शंखधर! जिनकी आत्मा मर चुकी, वे बेचारे वोटिंग के समय किसकी आवाज सुनें?"
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया, "हे जयंत! मैं नई गीता लिख भी दूंगा, तो भी पाठक उसी गीताप्रेस, गोरखपुर वाली पुरानी गीता को ही ओरिजनल मानेंगे। रागी हो कि वैरागी, साधु हो कि गृहस्थ, सब के स्वार्थ में सदुपयोग भी वही हो रही है। फिर पारिश्रमिक रहित श्रम करना भी मूर्खता है। प्रकाशकों ने स्वयं तो मेरी गीता की करोड़ों प्रतियां छाप-छाप कर घरों में वैभव-विलास के साधन जुटा लिए और मुझे आज तक धेलाभर रॉयल्टी भी नहीं दी। अतः हे पार्थ! संशय में मत पड़ो। स्मरण रखो तुम अर्जुन हो, अर्जुन सिंह नहीं।"
अर्जुन ने आशंका दोहराई तथा आगाह किया, "हे मुरारी! मुझे लगता है कि भारत में नित्य ही कौरव और पांडव आमने-सामने रहने लगे हैं। आपके कथन के विपरीत आत्माएं मरने लगी हैं। भारत को अतिशीघ्र बचाना है। प्रभु! भूलो मत कि आप द्वारा रचित इतनी बड़ी सृष्टि में भारतीय ही हैं, जो अपने को थोड़ा बहुत मानते हैं। भारत नहीं बचा, तो अपन भी नहीं बचेंगे।"
श्रीकृष्ण ने उपदेशात्मक लहजे में कहा, "हे अर्जुन! आत्मा कभी मरती नहीं है। हां, बेची जा सकती है, गिरवी रखी जा सकती है, दबाई, पीटी और कुचली भी जा सकती है। चाहो, तो मैं तुम्हें भारत भूमि पर चल कर प्रत्यक्ष दिखा सकता हूं।"
इतनी कहा-सुनी के पश्चात् अर्जुन और श्रीकृष्ण ने साधुओं का रूप बनाया तथा दोनों भारत की धरती पर आकर राजनीति के गलियारों में फेरी लगाने लगे।
एक आत्मा को उसीका शरणदाता लातें जमा रहा था, "अपनी औकात में रह साली। बड़ी आई मुझे नैतिकता और वफादारी समझाने वाली। याद रखा कर, तू किसी सैनिक की नहीं, शिवसैनिक की आत्मा है। और शिवसैनिक के लिए राष्ट्र से बड़ा होता है महाराष्ट्र।"
दोनों साधुओं ने सुना। कई आत्माएं आर्तनाद कर रही थीं, "हाय! हमारे मालिक कितने निर्लज्ज हैं। कह रहे हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेंगे। अपने लिए वोट मांगने का समय आता है, तो भिखारी बन जाते हैं दुष्ट। जिस वोट के बल पर नालायक से लायक बने, आज उसी का तिरस्कार कर रहे हैं।"
अर्जुन ने आहिस्ता से पूछा, "हे सोमेश्वर! ये आत्माएं क्या प्रलाप कर रही हैं?"
श्रीकृष्ण ने हौले से उत्तर दिया, "हे धनञ्जय! ये सब थर्ड फ्रंट के मतलबी नेताओं की आत्माएं हैं, जो स्वार्थों के वशीभूत हो शिखण्डी बन गए हैं।"
कांगेसी वार्ता कर रहे थे, "हमने तो सोनिया गांधी जी की आवाज में कैसेट भरवा कर अपनी-अपनी आत्मा में फिट करवा ली है। जब भी 10 जनपथ से सत्य सुनने का आदेश मिलता है, फौरन टेप चालू कर सत्य सुन लेते हैं। कोई कांग्रेसी कहे कि वह सिर्फ निजी आत्मा की ही सुनता है, तो समझो वह भले कुछ और हो, 'सच्चा कांग्रेसी' नहीं हो सकता।"
एक निरीह आत्मा ने प्रार्थना की, "मेरी आवाज सुनोगे स्वामी?"
प्रतिक्रिया में उस आत्मा के आश्रयदाता ने उसे लाठी से पीटना प्रारम्भ कर दिया, "तू क्या इतनी सुदर्शन और सुरीली है कि तेरी आवाज सुनी जाए? तू सुन। हम भाजपाई हैं। हमने तो आजतक कभी उस भाग्यविधाता की ही नहीं सुनी, जो हमें वोट देता आया है।"
कई भाजपाई क्रॉस वोटिंग कर आए। दोनों साधुओं ने देखा, आलाकमान उन्हें तलब कर रहा है, "भैरों सिंह शेखावत को वोट देना था। प्रतिभा पाटिल को दे आए?"
"आत्मा की आवाज सुनी और दे आए।"
"भाजपाई होकर आत्मा की आवाज सुनते हो? शर्म नहीं आती तुम लोगों को?"
"आप ही ने तो कहा था कि मतदान आत्मा की आवाज सुन कर ही करना।"
"मैंने इसलिए कहा था कि चुनावों में ऐसा कहने का रिवाज है।ये शगूफे होते हैं, जो विरोधियों को पशोपेश में डालने हेतु छोड़े जाते हैं। अपनी आत्मा की आवाज सुनने से पहले जरा इतनी अक्ल तो लगाते कि क्या मैंने भी यह अपील अपनी आत्मा की आवाज सुन कर की थी? तुम्हें मालूम है, तुम्हारे इस सत्य आचरण से भारतीय जनता पार्टी को कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है?"
दोनों साधुओं को साम्यवादियों की आत्मा की भनक भी नहीं लगी। दया के पात्र भारतीय साम्यवादी आत्मा का बंधन नहीं स्वीकारते हैं। उनके सरोकार तो गठबंधन की आत्माओं से जुड़े हैं।
साधुओं ने यह भी देखा कि समाजवादियों की आत्मा उनके जूतों के तलों में लगी थीं और वे अपनी आत्मा को कुचलते हुए चले जा रहे थे।
मतदान केंद्र के बाहर आत्माओं का बड़ा समूह जार-जार रोए जा रहा था, "स्वयं ठप्पा लगाने गए। हमें यहीं छोड़ गए। हमारी सुनो मत, साथ तो रखो। तिरासी लाख निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे योनियों में भटकने के बाद भी न जाने कौनसा पाप शेष रह गया था, जो रहने के लिए इन नेताओं की देह मिली? हे परमात्मा! इन्हें शीघ्र उठा, ताकि हमें मुक्ति मिले। हमें पिछली समस्त योनियों में फिर से भटकना स्वीकार है प्रभु।"
कई नेता अपना वोट डालने तिहाड़ जेल से आए थे। किसी ने उनसे मजाक करी, "आत्मा की आवाज सुनी?"
ठहाके लगे, "ये आत्मा-वात्मा क्या होती है?"
दृश्य देख कर अर्जुन की आंखें फटी रह गईँ। उसके आश्चर्य का पारावार न रहा। भारतवर्ष में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाला राष्ट्रपति अपराधियों के वोटों से चुना जाता है?
अर्जुन बोला, "हे हरि! अविलंब लौट चलो। मैं आत्मा और धर्म के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान हासिल कर चुका हूं। राजनीति में काम, अर्थ और मोक्ष का चांस मिल रहा हो, तो राजनेताओं का धर्म बनता है कि वे साम, दाम, दण्ड, भेद से अपनी आत्माओं को गूंगी करदें अथवा स्वयं बहरे हो जाएं।"
श्रीकृष्ण मुस्काए। दोनों साधु कबीर वाणी गाते हुए अंतर्ध्यान हो गए--
सातों सबद जु बाजते, घरि घरि होते राग।
ते मंदिर खाली पड़े, बैसण लागे काग।।
अर्थात् भौतिक वैभव से युक्त जिन महलों में कभी सातों स्वर ध्वनित होते थे, प्रत्येक क्षण राग-रागनियां बजती थीं, वे महल खाली पड़े हैं।आज उन पर कौए बैठते हैं।
सुभ्रान्ति जी बहुत ही सुन्दर रचना है|आपने महाभारत से तुलना करके आज की महाभारत दिखा दी| आप ऐसी ही खूबसूरत रचनाओं को शब्दनगरी मे भी प्रकाशित कर सकते हैं | वहाँ अाप
ReplyDeleteमहाभारत युद्ध पश्चात कैसे हुआ भगवान श्रीकृष्ण का महाप्रयाण ?
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