Saturday, 26 September 2015

चुभने लगेगा आँखों में मंज़र...

चुभने लगेगा आँखों में मंज़र न देखिए
इन खिड़कियों से झाँक के बाहर न देखिए
मजबूर दिल के हाथों न होना पड़े मुझे
जा ही रहे हैं आप तो मुड़ कर न देखिए
मासूमियत पे आपकी हँसने लगेगी झील
कच्चे घड़े को पानी से भर कर न देखिए
रोना पड़ेगा बैठ के अब देर तक मुझे
मैं कह रहा था आपसे, हँस कर न देखिए
काँटों की रहगुज़र हो कि फूलों का रास्ता
फैला दिये हैं पाँव तो चादर न देखिए
--मुनव्वर राना
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तुम गये तुम्हारे साथ गया,
अल्हड़-अन्तर का भोलापन।
कच्चे-सपनों की नींद और,
आँखों का सहज सलोनापन।
तुम गये तुम्हारे साथ गया.......
यश-वैभव के ये ठाठ-बाट
अब सभी झमेले लगते हैं,
पथ कितना भी हो भीड़ भरा
दो पाँव अकेले लगते हैं,
हल करते-करते उलझ गया
भोली सी एक पहेली को,
चुपचाप देखता रहता हूँ
सोने मढ़ी हथेली को,
जितना रोता तुम छोड़ गये
उससे ज्यादा हँसता हूँ अब,
पर इन्हीं ठहाकों की गूंजों में
बज उठाता है खालीपन,
तुम गये तुम्हारे साथ गया.....
--डॉ. कुमार विश्वास

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