Friday, 2 October 2015

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं...

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीब ऐसा जो कुछ साथ नहीं लाया
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चला आया
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चला आया
पूजा की विधि नहीं जानता, फिर भी नाथ चला आया
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारी को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारी को समझो
मैं उनमत्त प्रेम का प्यासा हृदय दिखाने आया हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आया हूँ
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो।
ये तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो।।

8 comments:

  1. https://www.youtube.com/watch?v=lwTWHSLymto&feature=youtu.be

    ReplyDelete
  2. I read this poem in my childhood I still remember it

    ReplyDelete
  3. “Love’s Acolyte” by Elsa Gidlow

    Many have loved you with lips and fingers
    And lain with you till the moon went out;
    Many have brought you lover’s gifts;
    And some have left their dreams on your doorstep.

    But I who am youth among your lovers
    Come like an acolyte to worship,
    My thirsting blood restrained by reverence,
    My heart a wordless prayer.

    The candles of desire are lighted,
    I bow my head, afraid before you,
    A mendicant who craves your bounty
    Ashamed of what small gifts he brings.

    ReplyDelete