मैंने बापू को क्यों मारा?
तुम चाहते तो लालकिले पर भगवा फहरा सकते थे,
तुम चाहते तो पिंडी पर भी झंडा लहरा सकते थे।
तुम चाहते तो जिन्ना को चरणों में झुकवा सकते थे,
तुम चाहते तो भगतसिंह की फांसी रुकवा सकते थे।
तुम चाहते तो गरम दलों के इतने दुखड़े ना होते,
तुम चाहते तो भारत माँ के टुकड़े-टुकड़े ना होते।
लेकिन हठ में हमलों से अनजान बने बैठे थे तुम,
जाने क्यों खुद ही खुद में भगवान बने बैठे थे तुम।
सैंतालिस में शेर हमारे सिंहासन को मिल जाता,
और कमल भारत का पूरी कायनात में खिल जाता।
मुझको मेरी रगों में बहते लोहू ने ललकारा था,
इसीलिए मैंने गाँधी को दिल्ली जाकर मारा था। -नाथूराम गोडसे
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