Saturday, 24 May 2014

यूँ तो हसरत थी इक आशियाँ बनाने की......

यूँ तो हसरत थी इक आशियाँ बनाने की,
शायद नज़र लग गई इस ख़याल को जमाने की,

ख़ुशियाँ बाँटने मे कुछ यूँ मशगूल हो चले हम,
खत्म हो गई सारी ख़ुशियाँ मेरे ख़जाने की,

यूँ तो हरपल मे मेरी ठोकरे और ग़म शामिल,
फिर भी जाने क्युँ अदा भूली न मुस्कुराने की,

खुद से रूठे और रूठ कर खुद मान गये,
किसी को थी कहाँ फुरसत हमे मनाने की,

प्यार लोगों के दिल मे था कहाँ मेरी खातिर,
जो चाहते उसे मेरे हश्र पे जताने की,,,,,

यूँ तो हसरत थी इक आशियाँ बनाने की,
नज़र लग गई इस खयाल को जमाने की

Manzilein....

मंजिल मिल ही जायेगी एक दिन,भटकते-भटकते ही सही ।
 गुमराह तो वो है,जो घर से निकले ही नहीं ॥
खुशियां मिल जायेगी एक दिन,रोते रोते ही  सही ॥।
कमजोर दिल के है वो.जो हसने को सोचते ही नहीं ॥॥
 पुरे होंगे हर वो ख्वाब.जो देखते है अंधेरी रातों मे ॥॥।
ना समझ हैं वो.जो डर से पुरी रात सोते ही नही ॥

जरुरी है.....

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है|||

अपना गम..............

अपना गम लेके कहीं और न जाया जाये...
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये...
जिन चिरागों को हवाओं का कोई खौफ नही...
उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाये...
बाग़ में जा के आदाब हुआ करते हैं...
किसी तितली को न फूलो से उड़ाया जाये...
घर से मंजिल है बहुत दूर चलो यू करें...
किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाये...
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाये...
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये...

जब उम्र 16 की थी.....

उम्र 16 की थी और 3 बटन खुले थे . . . !!
जब सुबहे की चाय से ज्यादा दोस्त की ही ज़रूरत थी ,
और 5 स्टार के खाने के मज़े इंटरवल की पूरी सब्जी में लिए थे ..
यह बात है उन दिनों की...
जब उम्र 16 की थी और 3 बटन खुले थे
जब टॉप का बटन बंद करने पे गला दब सा जाता था ,
और फिर उसे बंद दिखने के लिए ही टाई को ऊपर तक सरकाया जाता था ..
जब टीचर के दीखते ही शर्ट के स्लीव्स ऑटोमेटिकली नीचे होते थे ..
बात है उन दिनों की.....
जब उम्र 16 की थी और 3 बटन खुले थे
जब गाडी के एक्सेलरेटर से ज्यादा मज़ा साइकिल की राइड में था ,
होमवर्क ख़त्म करके निकलना है कैसे भी ...हमेशा बस यही माइंड में था ,
ईरफ़ोन कान में जाने के बाद इस दुनिया से जो हम कटते थे ..
बात है उन दिनों की....
जब उम्र 16 की थी और 3 बटन खुले थे
किसी लड़की से बात भी कर ले एक बार तो 2 दिन तक जो शर्माना होता था ,
और उसके बाद 4 दिन जो दोस्तों का चिढाना होता था
फिर लगता था की पिक्चर के सारे गाने जैसे हमारे लिए ही बने थे ..
बात है उन दिनों की...
जब उम्र 16 की थी और 3 बटन खुले थे
अब तो फॉर्मेलिटी की बारिश में जैसे पूरी दुनिया ही भीगी है ,
Hypocrisy जैसे हर चीज़ मैं ही घर कर  बेठी है ,
मतलब और काम ... बस तभी लोग याद करते हैं
Casually मिलना तो अब जैसे गुनाह ही समझते हैं ..
आज शर्ट 2000 की है , बटन बंद है और उपर AC भी है ,
पर दिल में एक ख्याल है .. सर पे धुप थी …
जेब में नोट तब शायद कम थे …
पर Boss मज़ा तो तभी था जब उम्र 16 की थी और 3 बटन खुले थे....

विशाल पुतले का रावण.......

इस बार रामलीला में
राम को देखकर-
विशाल पुतले का रावण थोड़ाडोला,
फिर गरजकर राम से बोला-
ठहरो!
बड़ी वीरता दिखाते हो,
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो!
शर्म नहीं आती,
काग़ज़ के पुतले पर तीर चलाते हो।
मैं पूछता हूँ
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
प्रभो,
आप जानते हैं
कि मैंने अपना रूप कभी नहीं छिपाया है
जैसा भीतर से था
वैसा ही तुमने बाहर से पाया है।
आज तुम्हारे देश के ब्रम्हचारी,
बंदूके बनाते-बनाते हो गएहैं दुराचारी।
तुम्हारे देश के सदाचारी,
आज हो रहे हैं व्याभिचारी।
यही है तुम्हारा देश!
जिसकी रक्षा के लिए
तुम हर साल
कमान ताने चले आते हो?
आज तुम्हारे देश में विभीषणों की कृपा से
जूतों दाल बट रही है।
और सूपनखा की जगह
सीता की नाक कट रही है।
प्रभो,
आप जानते हैं कि मेरा एक भाई कुंभकर्ण था,
जो छह महीने में एक बार जागता था।
पर तुम्हारे देश के ये नेता रूपी कुंभकर्ण पाँच बरस में एक बार जागते हैं।
तुम्हारे देश का सुग्रीव बन गया है तनखैया,
और जो भी केवट हैं वो डुबो रहे हैं देश की बीच धार में नैया।
प्रभो!
अब तुम्हारे देश में कैकेयी के कारण
दशरथ को नहीं मरना पड़ता है,
बल्कि कम दहेज़ लाने के कारण
कौशल्याओं को आत्मदाह करना पड़ता है।
अगर मारना है तो इन ज़िंदारावणों को मारो
इन नकली हनुमानों के
मुखौटों के मुखौटों को उतारो।
नाहक मेरे काग़ज़ी पुतले पर तीर चलाते हो
हर साल अपनी कमान ताने चलेआते हो।
मैं पूछता हूँ
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है

Gandhi Hatya

मैंने बापू को क्यों मारा?

तुम चाहते तो लालकिले पर भगवा फहरा सकते थे,
तुम चाहते तो पिंडी पर भी झंडा लहरा सकते थे।
तुम चाहते तो जिन्ना को चरणों में झुकवा सकते थे,
तुम चाहते तो भगतसिंह की फांसी रुकवा सकते थे।
तुम चाहते तो गरम दलों के इतने दुखड़े ना होते,
तुम चाहते तो भारत माँ के टुकड़े-टुकड़े ना होते।
लेकिन हठ में हमलों से अनजान बने बैठे थे तुम,
जाने क्यों खुद ही खुद में भगवान बने बैठे थे तुम।
सैंतालिस में शेर हमारे सिंहासन को मिल जाता,
और कमल भारत का पूरी कायनात में खिल जाता।
मुझको मेरी रगों में बहते लोहू ने ललकारा था,
इसीलिए मैंने गाँधी को दिल्ली जाकर मारा था। -नाथूराम गोडसे