Saturday, 14 October 2017

You Start Dying Slowly

*नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..*

1) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।

2) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:*
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।

3) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।

4) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।

5) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
*तब आप धीरे-धीरे मरने  लगते हैं..!!*

*इसी कविता के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।  *

Thursday, 1 December 2016

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नहीं तो, कल निकलेगा ।।
अर्जुन सा लक्ष्य रख, निशाना लगा ।
मरुस्थल से भी फिर, जल निकलेगा।।
मेहनत कर, पौधों को पानी दे ।
बंजर में भी फिर, फल निकलेगा ।।
ताक़त जुटा, हिम्मत को आग दे ।
फौलाद का भी, बल निकलेगा ।।
सीने में उम्मीदों को, ज़िंदा रख ।
समन्दर से भी,गंगाजल निकलेगा ।।
कोशिशें जारी रख, कुछ कर ग़ुज़रने की ।
जो कुछ थमा-थमा है, चल निकलेगा ।।
कोशिश कर, हल निकलेगा ।
आज नहीं तो, कल निकलगा ।।।

Wednesday, 30 November 2016

Motivation...

टूटने  लगे  हौसले  तो  बस  ये  याद  रखना,
बिना  मेहनत  के  हासिल  तख्तो  ताज  नहीं  होते,
ढूँढ़ ही लेते है अंधेरों  में  मंजिल  अपनी,
जुगनू  कभी  रौशनी  के  मोहताज़  नहीं  होते…..!!!!!!!!!!!

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सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो

किसीके वासते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसीको कोई रासता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी, कुछ ख़ाक चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

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कोशिश करने वालों की कभी हार
नहीं होती || लहरों से डरकर नौका कभी
पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं
होती |नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती
है|
चढती दीवारों पर सौ बार फिसलती
है ,मन का विश्वास रगों में साहस भरता ,
चढकर गिरना ,गिरकर चढना न उसे अखरता
,आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती |
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं
होती |डुबकियाँ सिन्धु में गोताखोर
लगता है ,
जा- जाकर खली हाथ लौटकर आता
है ,मिलते न सहजे ही मोती गहरे पानी में ,
बढ़ता दूना उत्सर उसी हैरानी में ,मुठ्ठी
उसकी खाली हर बार नहीं होती |
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं
होती |ये सफलता एक चुनौती है,उसे
स्वीकार करो ,
क्या कमी रह गयी ,देखो और सुधर करो
,जबतक न हो सफल तुम नींद चैन की त्यागो
तुम ,
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम,कुछ
किए बिना जय जयकर नहीं होती |
कोशिश करने वालों की कभी हर नहीं
होती |

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जिंदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए
और अपने आप पर विश्वास होना चाहिए
जीवन में खुशियों की कोई कमी नहीं होती
बस जीने का अंदाज़ होना चाहिए।” :):)

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ग़लतफ़हमियों के सिलसिले इस कदर फैले हैं…
कि हर ईंट सोचती है, दीवार हमहीं से है…

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लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं;
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते
क्यों हैं;
मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ;
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं;
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से;
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं;
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए;
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं।

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जब चलना नहीं आता तो गिरने नहीं देते थे लोग….
जब से संभाला खुद को कदम कदम पर गिराने की सोचते है लोग….

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पाना है जो मुकाम वो अभी बाकि है,

अभी तो आये है जमी पर ,आसमां की उड़न अभी बाकि है…

अभी तो सुना है सिर्फ लोगो ने मेरा नाम,

अभी इस नाम की पहचान बनाना बाकि है

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उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते

दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते

हो दिल में जिसके जज़्बा मंजिल छूने का

वो मुश्किलों से घबराया नहीं करते….

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संघषोॅ मे यदि कटता है तो कट जाए सारा जीवन,
कदम कदम पर समजौता करना मेरे बस की बात नही..!

Sunday, 13 November 2016

*जीत पक्की है*

✨ *जीत पक्की है* ✨

कुछ करना है, तो डटकर चल।
           *थोड़ा दुनियां से हटकर चल*।
लीक पर तो सभी चल लेते है,
      *कभी इतिहास को पलटकर चल*।
बिना काम के मुकाम कैसा?
          *बिना मेहनत के, दाम कैसा*?
जब तक ना हाँसिल हो मंज़िल
        *तो राह में, राही आराम कैसा*?
अर्जुन सा, निशाना रख, मन में,
          *ना कोई बहाना रख*।
जो लक्ष्य सामने है, 
बस उसी पे अपना ठिकाना रख।
          *सोच मत, साकार कर*,
अपने कर्मो से प्यार कर।
          *मिलेंगा तेरी मेहनत का फल*,
किसी और का ना इंतज़ार कर।
    *जो चले थे अकेले*
       *उनके पीछे आज मेले हैं*।
    जो करते रहे इंतज़ार उनकी
  जिंदगी में आज भी झमेले है..

Saturday, 1 October 2016

*** " माँ- बाप "***

*** " माँ- बाप "***
हम दो हमारे दो
छोटा परिवार सुखी परिवार
आधुनिकता की इस लहर में
हम इस कदर बह गये ,
कि माँ - बाप
अब परिवार के अंग नहीं रह गये ।
यदि किसी परिवार में
वे भूल से दिख जाते हैं
तो विश्वास कीजियेगा
वे पप्पू और पिन्की को स्कूल
ले जाने और ले आने के काम आते हैं ।
और कहीं-कहीं
दूध और सब्जी लाने के बहाने
मार्निगं वाक भी कर आते हैं ।
राम, श्रवण और भीष्म
अब केवल किताबों में ही रह गये
माँ - बाप अब
परिवार के अंग नहीं रह गये ।
फिर भी यदि
किसी परिवार में उनकी
बहुत ज्यादा खातिरदारी होती होगी
तो यकीन मानिएगा
या तो उनका
बहुत बड़ा बैंक बैलेंस होगा
या उन्हें
सरकारी पेंशन मिलती होगी ।

Wednesday, 28 September 2016

Whatsapp ki Duniya-2

✍............................... ✍
अंधेरा वहां नहीं है जहां तन गरीब है,
अंधेरा वहां है जहां मन गरीब है...!!!"

ना बुरा होगा, ना बढ़िया होगा,
होगा वैसा, जैसा नजरिया  होगा..।

हजार महफ़िलें हों, लाख मेले हों!
पर जब तक खुद से न मिलो, अकेले हो...!

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Put a frog in a vessel of water and start heating the water.

As the temperature of the water rises, the frog is able to adjust its body temperature accordingly.

The frog keeps on adjusting with increase in temperature...

Just when the water is about to reach boiling point, the frog is not able to adjust anymore...

At that point the frog decides to jump out...

The frog tries to jump but is unable to do so, because it has lost all its strength in adjusting with the rising water temperature...

Very soon the frog dies.

What killed the frog?

Many of us would say the boiling water...

But the truth is what killed the frog was its own inability to decide when it had to jump out.

We all need to adjust with people and situations, but we need to be sure when we need to adjust and when we need to confront/face.

There are times when we need to face the situation and take the appropriate action...

If we allow people to exploit us physically, mentally, emotionally or financially, they will continue to do so...

We have to decide when to jump.

Let us jump while we still have the strength.

Think on It !!
I love this message every time I read...👌

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*दूध को दुखी करो तो दही बनता है|*
*दही को सताने से मक्खन बनता है|*
*मक्खन को सताने से घी बनता है|*
*दूध से महंगा दही है,दही से महंगा मक्खन है,और मक्खन से महंगा घी है|*
*किन्तु इन चारों का रंग एक ही है सफेद|*
*इसका अर्थ है बाऱ- बार दुख और संकट आने पर भी जो इंसान अपना रंग नहीं बदलता,समाज में उसका ही मूल्य बढ़ता है|*
👉🏻 *दूध* उपयोगी है किंतु एक ही दिन के लिए, फिर वो *खराब* हो जाता है....!!
👉🏻 *दूध* में एक बूंद *छाछ* डालने से वह *दही* बन जाता है जो केवल दो और दिन *टिकता* है....!!
👉🏻 *दही* का मंथन करने पर *मक्खन* बन जाती है, यह और तीन दिन टिकता है....!!
👉🏻 *मक्खन* को उबालकर *घी* बनता है, *घी* कभी खराब नहीं होता....!!
👉🏻 एक ही दिन में बिगड़ने वाले *दूध* में कभी नहीं बिगड़ने वाला *घी* छिपा है....!!
👉इसी तरह आपका *मन* भी अथाह *शक्तियों* से भरा है, उसमें कुछ *सकारात्मक विचार* डालो अपने आपको *मथो* अर्थात *चिंतन* करो....अपने *जीवन* को और *तपाओ* और तब देखना
*आप कभी हार नहीं मानने वाले सदाबहार व्यक्ति बन जाओगे....!!*

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Saturday, 13 August 2016

बड़े दिन हो गए........

वो माचिस की सीली डब्बी, वो साँसों में आग
बरसात में सिगरेट सुलगाये बड़े दिन हो गए

वो दांतों का पीसना, वो माथे पर बल
किसी को झूठा गुस्सा दिखाए बड़े दिन हो गए

एक्शन का जूता और ऊपर फॉर्मल सूट
बेगानी शादी में दावत उड़ाए बड़े दिन हो गए

ये बारिशें आजकल रेनकोट में सूख जाती हैं
सड़कों पर छपाके उड़ाए बड़े दिन हो गए

अब सारे काम सोच समझ कर करता हूँ ज़िन्दगी में
वो पहली गेंद पर बढ़कर छक्का लगाये बड़े दिन हो गए

वो ढ़ाई नंबर का क्वेश्चन, पुतलियों में समझाना
किसी हसीन चेहरे को नक़ल कराये बड़े दिन हो गए

जो कहना है फेसबुक पर डाल देता हूँ
किसी को चुपके से चिट्ठी पकड़ाए बड़े दिन हो गए

बड़ा होने का शौख भी बड़ा था बचपन में
काला चूरन मुंह में तम्बाकू सा दबाये बड़े दिन हो गए

मेरे आसमान अब किसी विधवा की साड़ी से लगते हैं
बादलों में पतंग की झालर लगाए बहुत दिन हो गए

सुबह के सारे काम अब रात में ही कर लेता हूँ
सफ़ेद जूतों पर चाक लगाए बड़े दिन हो गए

भरी क्लास में वो बेहया मोहब्बत के इशारे
उंगलियों को होठों पर फिराए बड़े दिन हो गए

लोग कहते हैं अगला बड़ा सलीकेदार है
दोस्त के झगडे को अपनी लड़ाई बनाये बड़े दिन हो गए

साइकिल की सवारी और ऑडी सा टशन डंडा पकड़ कर कैंची चलाये बड़े दिन हो गए

ढ़ाई अक्षर पकाने में वो ढाल साल की तैयारी
वो ‘पहले इश्क्’ की बिरयानी खाए बड़े दिन हो गए

किसी इतवार खाली हो तो आ जाना पुराने अड्डे पर
दोस्तों को दिल के शिकवे सुनाये बड़े दिन हो गए.........