स्वप्न सलोना टूट भी जाये मत होना भयभीत/
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
सुख दुख भूल कर सारे अपने एक ही धुन रहती है/
जन्मदायिनी माता भी तो कितनी पीडा सहती है/
माँ के मन की माँ ही जाने क्या ममता क्या प्रीत/
नही चाहिये कोख का अंकुर धरती कब ये कहती है/
जन्मदायिनी माता भी तो कितनी पीडा सहती है/
माँ के मन की माँ ही जाने क्या ममता क्या प्रीत/
नही चाहिये कोख का अंकुर धरती कब ये कहती है/
बिना भावना सृजन ना होता ना होती है प्रीत /
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
एक बाँस मे सजे भावना बंसी बन संगीत बिखरते/
एक तूलिका करे कामना मनभावन से चित्र उभरते/
मिल जाते भाअर्थ कभी तो शब्द कविता मे ढलते हैं/
एक शिल्पी जब करे साधना पत्थर में भगवान उतरते/
एक तूलिका करे कामना मनभावन से चित्र उभरते/
मिल जाते भाअर्थ कभी तो शब्द कविता मे ढलते हैं/
एक शिल्पी जब करे साधना पत्थर में भगवान उतरते/
बिना साधना कला ना होती ना होता संगीत/
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
ऐसा कौन सिकन्दर है जो बिन हारे ही जीत गया हो/
ऐसा कौन धुरन्धर है जो बिन गलती के सीख गया हो/
माँ के गर्भ से सीख के कोई दुनिया में कब आता है/
ऐसा कोई वक्त नही , जो बिना चुनौती बीत गया हो/
ऐसा कौन धुरन्धर है जो बिन गलती के सीख गया हो/
माँ के गर्भ से सीख के कोई दुनिया में कब आता है/
ऐसा कोई वक्त नही , जो बिना चुनौती बीत गया हो/
एक परीक्षा हर पल जीवन नही किसी से मीत/
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
जीवन में हर भोर से पहले काली रातें आती हैं/
धरती गर्मी से तपती तब, गगन में बदली छाती हैं/
हर उपलब्धि की राहों में धूप भी होगी शूल भी होंगे/
पाँव मे छाले जिनके रिसते मंजिल गले लगाती है//
धरती गर्मी से तपती तब, गगन में बदली छाती हैं/
हर उपलब्धि की राहों में धूप भी होगी शूल भी होंगे/
पाँव मे छाले जिनके रिसते मंजिल गले लगाती है//
सतत प्रयास ही सही नीति है अग्निपथ ही रीत/
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत//