Tuesday, 17 June 2014

कभी नहीं, कभी नहीं.....

कहत कवि संता सुन भई बंता
साले की बुराई,
शक्की को दवाई,
उधार-प्रेमी को अपने दोस्त से मिलाना,
पत्नी को अपनी असली इनकम बताना,
नवजात कुत्ते के बच्चे को सहलाना,
और पहलवान की बहन से इश्क़ लड़ना,
कभी नहीं, कभी नहीं।

नाई से उधारी में दाढ़ी,
या फिर सेकंड हैण्ड गाड़ी,
नॉन वेज होटल में वेजिटेरियन खाना,
और बिना पानी देखे टॉयलेट में जाना,
कभी नहीं, कभी नहीं।

2 नंबर की कमाई रिश्तेदार के नाम रखना,
सुंदर जवान नौकरानी को काम पे रखना,
पत्नी से सुंदर ,पड़ोसन को बताना,
और पुलिस वाले को मकान में किराये पे रखना,
कभी नहीं, कभी नहीं।

बिना हाथ दिए गाड़ी मोड़ना,
सफ़र में सहयात्री के भरोसे अटैची छोड़ना,
चिपकू मेहमान को बढ़िया खाना खिलाना,
टीचर के बच्चे को ट्यूशन पढ़ाना,
कभी नहीं, कभी नहीं।

चोरी के डर से पड़ोसी को सुलाना,
कम उम्र की महिला को आंटी बुलाना,
लंगर की पंक्ति में आखिर में बैठना,
और पत्नी को उसके मायके में ऐठना,
कभी नहीं, कभी नहीं.....

Wednesday, 11 June 2014

ज़रा पहले बता देना..

भरोसा टूट जाने से
ज़रा पहले बता देना..
मुझे तुम आज़माने से
ज़रा पहले बता देना..
किसी हीले-बहाने से
ज़रा पहले बता देना..
कि मुझको तुम भुलाने से
ज़रा पहले बता देना..
सुनो ! दामन छुड़ाने से
ज़रा पहले बता देना..
किसी भी मोड़ पर ऐ दोस्त,
बुरा पाओ अगर मुझको..
ज़माने के बताने से
ज़रा पहले बता देना..

Sunday, 1 June 2014

सफ़र जो धूप का....

सफ़र जो धूप का किया तो
तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो
छाँव छाँव चली।।....
जिंदगी ने कई सवालात बदल
डाले
वक़्त ने मेरे हालात बदल डाले
मैं तो आज भी वही हूँ जो मैं
कल था
बस मेरे लिये लोगों ने अपने
ख़यालात बदल डाले।.......

किस्से नहीं है रास....

किस्से नहीं है रास दुनिया-ए-अजीब के!
सुनने पड़े हैं ताने अक्सर हबीब के !!
था वादे का वो पक्का और पहुंचा वक़्त पर,
पर मेरे घर ना होकर, घर पर रकीब के!
रातें हैं कटती तन्हा दिन भी गुज़रता खाली,
शब्-औ-रोज़ हो गए गिरफ्त में नसीब के!
खुद ही दिया था उसने अपने निकाह का ख़त,
अरमान यूँ लुटे है देखो गरीब के!
अब भाग्य है मुखालिफ तो रिश्तेदार,
सब हो गए हैं दूर जो थे करीब के !
(हबीब=मित्र, रकीब=शत्रु, शब्-ओ-रोज़=रात-दिन, बख्त=भाग्य, मुखालिफ=विपरीत)